हम भारत सरकार से भी अनुरोध करते हैं कि
1) गंगा जैसी बड़ी-बड़ी नदियों और उससे जुड़ी नहरों के पुल पर बड़े-बड़े जाल लगाए जाएं जिससे नदियों में कोई भी मनुष्य गंदगी ना फेंके।और जो फैलाता पकड़ा जाए उस पर कड़ी से कड़ी कार्रवाई हो और भारी से भारी जुर्माना हो ।
2) पुरे समूचे उत्तराखंड में प्लास्टिक की वस्तुओं जैसे बोतल थैलियां और अन्य पदार्थ पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध हो ।
3) नदियों के किनारे जितनी भी बड़े-बड़े कारखाने हैं और जो अपना कूड़ा और केमिकल नदियों में फेंकते हैं उन पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगाया जाए।
4) आजकल देखने में आ रहा है की अस्थियों के विसर्जन के लिए उत्तराखंड बॉर्डर पर उत्तराखंड सीमा पर एवं अन्य नदियों में अस्थियां राख विसर्जन के लिए लंबी कतारें लगी हुई हैं, जिसके कारण वहां पर तैनात पुलिसकर्मियों को और प्रतीक्षारत लोगों को बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा हैं।
ऐसे कोविड काल में है संक्रमण और अधिक बढ़ सकता हैं वैसे भी यदि हम इन नदियों को प्रदूषण मुक्त रखना चाहते हैं तो सरकार की ओर से हमेशा के लिए सदा के लिए एक नियम कड़े रूप से लागू कर देना चाहिए जिसके अंतर्गत दाह संस्कार के बाद प्रत्येक व्यक्ति के दाह संस्कार के बाद उसकी अस्थियां एवं राख श्मशान घाट में बनाए गए कोष में ही जमा हो जाए और वहां से ही सरकार उर्वरक एवं खाद एजेंसियों से मिलकर उसका निस्तारण करें, जिससे वह यथावत सभी खेतों में जमीन में विलीन हो जाए क्योंकि इस राख में प्रचुर मात्रा में कैल्शियम और फास्फोरस तत्व तथा अन्य खनिज विद्यमान रहते हैं , जिससे धरती की उर्वरक क्षमता बरकरार रहती है और लोग भी इससे परेशानी इसमें परेशानी से बच जाएंगे ।
5) बड़ी नदियों के दोनों किनारों पर एक किलोमीटर की दूरी तक , और छोटी नदियों के दोनों किनारों पर आधा किलोमीटर की दुरी तक वृक्षारोपण हो।
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